स्त्रीमन कि एक अवस्था को पुरुष ह्रदय से टटोलने का प्रयास है ये पंक्तियां..........
गन्दी , अयोग्य , धुंधली
कहा था मुझे उस घर के लोगो ने ,
जिस घर में मैं रहती हूँ .
मूक , शांत , निष्भाव
रहना पड़ता है मुझे वहाँ,
जिस घर में मैं रहती हूँ
समय के थपेडों ने
धीरे धीरे तोड़ा मुझे
अच्छा हुआ मैं टूट गयी
झांक सकती हूँ मैं अब
चिटके पटल की दरार से
बंद वातावरण सी स्तिथि को अपनी
मौजूद है अब भी सब यादें
कमजोर हो चुके मस्तिस्क में मेरे
नहीं था इतना सुन्दर , इतना उच्च
इतना दुखपूर्ण घर मेरा ,
कौन थी मैं याद है मुझे
तब तुम युवा थे
चाहा था तुमने कि कोई "तुम" बने
तब भावों की पेंसिल से
अपने कोमल , निष्कपट ह्रदय पर
कुरेद-कुरेद किया था रेखांकित मुझे
पर हाथ कांप उठे तुम्हारे तब
जब भरना था रंग रीतियों का
और तुम न भर सके ......
मैं रोई , चिल्लाई , गिडगिडायी
और नीलाम हो गयी
किसी भावहीन चिय्रकार को ,
लीपापोती की उसने मेरे ऊपर
टांग दिया अपने बंद घर की दीवार पर
रो उठा था तुम्हारा रेखाचित्र
दबाव डालता रहा रंगों पर
कि छूट जाएँ वो ....
नहीं चाहिए मुझे रंगीन जीवन
तुम्हारा रेखाचित्र ही है मेरी आत्मा
बहना चाहता है लाल रंग
चिटके पटल कि दरारों से
मुक्त होनी चाहती है आत्मा वहां से
जिस घर में मैं रहती हूँ............
गन्दी , अयोग्य , धुंधली
कहा था मुझे उस घर के लोगो ने ,
जिस घर में मैं रहती हूँ .
मूक , शांत , निष्भाव
रहना पड़ता है मुझे वहाँ,
जिस घर में मैं रहती हूँ
समय के थपेडों ने
धीरे धीरे तोड़ा मुझे
अच्छा हुआ मैं टूट गयी
झांक सकती हूँ मैं अब
चिटके पटल की दरार से
बंद वातावरण सी स्तिथि को अपनी
मौजूद है अब भी सब यादें
कमजोर हो चुके मस्तिस्क में मेरे
नहीं था इतना सुन्दर , इतना उच्च
इतना दुखपूर्ण घर मेरा ,
कौन थी मैं याद है मुझे
तब तुम युवा थे
चाहा था तुमने कि कोई "तुम" बने
तब भावों की पेंसिल से
अपने कोमल , निष्कपट ह्रदय पर
कुरेद-कुरेद किया था रेखांकित मुझे
पर हाथ कांप उठे तुम्हारे तब
जब भरना था रंग रीतियों का
और तुम न भर सके ......
मैं रोई , चिल्लाई , गिडगिडायी
और नीलाम हो गयी
किसी भावहीन चिय्रकार को ,
लीपापोती की उसने मेरे ऊपर
टांग दिया अपने बंद घर की दीवार पर
रो उठा था तुम्हारा रेखाचित्र
दबाव डालता रहा रंगों पर
कि छूट जाएँ वो ....
नहीं चाहिए मुझे रंगीन जीवन
तुम्हारा रेखाचित्र ही है मेरी आत्मा
बहना चाहता है लाल रंग
चिटके पटल कि दरारों से
मुक्त होनी चाहती है आत्मा वहां से
जिस घर में मैं रहती हूँ............