तन्हा
क्यूँ हूँ मैं
तेरे
होने के बाद भी,
प्यासी
क्यूँ है सांस
इतना
पीने के बाद भी..
दर
दर की शराब
उतारी
है हलक से,
तर
क्यूँ न हुआ
फिर
अक्स शर्म से..
रवि
कह नहीं सकता
पिला
दे एक बार,
हर
ख़्वाब कमबख्त
पर
तेरा नाम ले..
देखूँ
मैं भी कब आएगी
मय
प्याले को चखने,
आधी
उम्र की आवारगी
बाकी
थोडा और सही..
अब
न लौटूंगा तेरे पास
निकालने
को दफन खंजर,
दर्द
बड़े काम का निकला ये
अब
गुनाह कर सुकून है मुझे....