सोमवार, 1 अगस्त 2011

अन्तर्द्वंद

खून से रिश्ता बनता आया
क्यों रिश्तो से न खून बने ?
सम्बन्ध ही जन्मे भावना
क्यों भावनाओ से न सम्बन्ध बने ?

धर्म बनता कर्म है आया
क्यों कर्मो से न धर्म बने ?
माता से बने है भाई मगर
इन जानो में क्यों न भाई बने ?

मैं चाहता हूँ  ....

तोड़ दो सारी कुरीतियाँ 
बनाना है तुम्हे  कुछ नया
करो तुम वो जो "तुम "  ने कहा
सुनो न किसने क्या है कहा ,

मानवता से प्रेरित हो भाव सभी
न मूल्य रहें  कु-धर्मो का कोई
मानव की श्रष्टि  बना डालो
तो  फिर जाग सके दुनिया सोयी ................


 

2 टिप्‍पणियां:

  1. मानवता से प्रेरित हो भाव सभी
    न मूल्य रहें कु-धर्मो का कोई
    मानव की श्रष्टि बना डालो
    तो फिर जाग सके दुनिया सोयी ................

    बहुत सुंदर .....सार्थक भाव लिए पंक्तियाँ

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  2. धन्यवाद डॉ मोनिका....आपके शब्दों का आभारी हू.

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