एक सुबह अपनों ने जगाया मुझे,
आशीर्वाद दिया और बोला कि जाना है तुम्हे कुछ करना है..
आँख मलता मैं जाना नहीं चाहता था ...
पापा रोक लो, मम्मी रोक लो , प्रिये मैं नहीं जाना चाहता
पर किसी ने न सुनी .....................
बाहर बहुत रौशनी थी, चश्मा लगा लिया था
लोग चिल्ला रहे थे तो इयर फोन ठूस लिया था कानो में
खाना भी घर जैसा नहीं मिला मुझे
जो मिला उसी में घर का भाव खोजा था मैंने,
पृथक ना हो जाऊ, सो चाल और बोल
दोनों नयी सीख ली थी.....
एक दिन रात को नीद नहीं आ रही थी
घुटन महसूस होने लगी ,
मन भर के रोया ....
हसरत थी कि मम्मी , पापा, प्रिये
काश कमरे के कोने से
चुपके से देख लेती मेरी पीड़ा तुम,
तो समझ जाती कि जिस रवि को
तुने सींचा था अपने भावो से वो वैसा ही है ,
जलता है , कोसता है अपने में हुए भौतिक परिवर्तन को
जिसको तुमने स्थायी समझ लिया है .....
very nice...keep it up
जवाब देंहटाएंvery nice...keep it up
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द और भावो में सुन्दर कविता
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