कल जब सुबह होगी,
फिर उठूँगा
कुछ नया करुगा
पर ये तो मैंने कल भी सोचा था
और शायद कल भी सोचूंगा ,
स्खलित नहीं हुई है रूह मेरी
गहरा समंदरहै उतरने को अभी,
पर ये तो मैंने कल भी सोचा थाऔर शायद कल भी सोचूंगा,
कब तृप्ति मिलेगी ?
कब तृष्णा बुझेगी ?
कब कब्र होगी "बस एक और " की तमन्ना ?
पर ये तो मैंने कल भी सोचा था
और शायद कल भी सोचूंगा,
bahut hi shandar kavita hai sir... badhai ho ... aap ubharate hue rachanakar hai.
जवाब देंहटाएंaakhir maine tumhe dhundh liya..kitni shandar rachna hai..dil ko choone wali..keep it up
जवाब देंहटाएं"ये तो मैंने कल भी सोचा था
जवाब देंहटाएंऔर शायद कल भी सोचूंगा"
इंसानी फिदरत की बहुत कम शब्दों में सटीक प्रस्तुति
"कब कब्र होगी 'बस एक और' की तमन्ना?"
- शायद कभी नहीं